श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 121: मांस न खानेसे लाभ और अहिंसाधर्मकी प्रशंसा  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  13.121.18 
जातिजन्मजरादु:खैर्नित्यं संसारसागरे।
जन्तव: परिवर्तन्ते मरणादुद्विजन्ति च॥ १८॥
 
 
अनुवाद
इस संसार-सागर में समस्त प्राणी गर्भ, जन्म और वृद्धावस्था आदि दुःखों से पीड़ित होकर सदैव सर्वत्र भटकते रहते हैं। साथ ही वे मृत्यु के भय से भी व्याकुल रहते हैं। 18॥
 
In this world-ocean, all the living beings always wander everywhere, suffering from the miseries of pregnancy, birth and old age etc. At the same time they remain troubled by the fear of death. 18॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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