श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 121: मांस न खानेसे लाभ और अहिंसाधर्मकी प्रशंसा  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  13.121.16 
प्राणदानात् परं दानं न भूतं न भविष्यति।
न ह्यात्मन: प्रियतरं किंचिदस्तीह निश्चितम्॥ १६॥
 
 
अनुवाद
प्राणदान से बढ़कर न कभी कोई दान हुआ है और न कभी होगा। अपनी आत्मा से बढ़कर हमें कुछ भी प्रिय नहीं है। यह निश्चय है॥16॥
 
There has never been and will never be any greater donation than the donation of life. There is nothing dearer to us than our own soul. This is a certainty.॥ 16॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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