श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 120: मद्य और मांसके भक्षणमें महान् दोष, उनके त्यागकी महिमा एवं त्यागमें परम लाभका प्रतिपादन  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  13.120.8 
यो यजेताश्वमेधेन मासि मासि यतव्रत:।
वर्जयेन्मधु मांसं च सममेतद् युधिष्ठिर॥ ८॥
 
 
अनुवाद
युधिष्ठिर! जो मनुष्य कठोर व्रतों का पालन करता है और प्रति माह अश्वमेध यज्ञ करता है तथा जो मद्य और मांस का त्याग करता है, उन दोनों को एक ही फल प्राप्त होता है॥8॥
 
Yudhishthira! The man who observes strict fasts and performs the Ashwamedha Yagna every month and the one who renounces wine and meat, both get the same result. ॥ 8॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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