श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 120: मद्य और मांसके भक्षणमें महान् दोष, उनके त्यागकी महिमा एवं त्यागमें परम लाभका प्रतिपादन  »  श्लोक 53
 
 
श्लोक  13.120.53 
यस्तु वर्षशतं पूर्णं तपस्तप्येत् सुदारुणम्।
यश्चैव वर्जयेन्मांसं सममेतन्मतं मम॥ ५३॥
 
 
अनुवाद
जो मनुष्य सौ वर्षों तक घोर तप करता है और जो केवल मांस का त्याग करता है - मेरी दृष्टि में दोनों एक समान हैं ॥ 53॥
 
A man who performs severe austerities for a hundred years and one who simply abandons meat - both are the same in my eyes. ॥ 53॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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