श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 120: मद्य और मांसके भक्षणमें महान् दोष, उनके त्यागकी महिमा एवं त्यागमें परम लाभका प्रतिपादन  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  13.120.47 
प्रवृत्तिलक्षणो धर्म: प्रजार्थिभिरुदाहृत:।
यथोक्तं राजशार्दूल न तु तन्मोक्षकाङ्क्षिणाम्॥ ४७॥
 
 
अनुवाद
उत्तम! साधकों ने धर्म को प्रवृत्ति के रूप में प्रतिपादित किया है, किन्तु मोक्ष चाहने वाले विरक्त पुरुषों के लिए वह उपयुक्त नहीं है ॥47॥
 
The best! The aspirant men have propounded Dharma as a trend, but it is not suitable for detached men who desire salvation. 47॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.