श्री महाभारत » पर्व 13: अनुशासन पर्व » अध्याय 120: मद्य और मांसके भक्षणमें महान् दोष, उनके त्यागकी महिमा एवं त्यागमें परम लाभका प्रतिपादन » श्लोक 45 |
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| | श्लोक 13.120.45  | आहर्ता चानुमन्ता च विशस्ता क्रयविक्रयी।
संस्कर्ता चोपभोक्ता च खादका: सर्व एव ते॥ ४५॥ | | | अनुवाद | जो व्यक्ति पशु को वध के लिए लाता है, जो उसे मारने की अनुमति देता है, जो उसे मारता है तथा जो उसे खरीदता, बेचता, पकाता और खाता है, वे सब खाने वाले माने जाते हैं। अर्थात् वे सब खाने वालों के समान ही पाप के भागी हैं।॥45॥ | | ‘The person who brings the animal for slaughter, the one who gives permission to kill it, the one who slaughters it and the one who buys, sells, cooks and eats it, all of them are considered eaters. That is, all of them are as guilty of sin as the eaters.’॥ 45॥ |
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