श्री महाभारत » पर्व 13: अनुशासन पर्व » अध्याय 120: मद्य और मांसके भक्षणमें महान् दोष, उनके त्यागकी महिमा एवं त्यागमें परम लाभका प्रतिपादन » श्लोक 39 |
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| | श्लोक 13.120.39  | अखादन्ननुमोदंश्च भावदोषेण मानव:।
योऽनुमोदति हन्यन्तं सोऽपि दोषेण लिप्यते॥ ३९॥ | | | अनुवाद | जो मनुष्य स्वयं मांस नहीं खाता, परन्तु खानेवाले का अनुमोदन करता है, वह भी अपने नकारात्मक भावों के कारण मांसभक्षण के पाप का भागी होता है। इसी प्रकार जो मनुष्य मारनेवाले का अनुमोदन करता है, वह भी हिंसा के पाप में लिप्त होता है॥ 39॥ | | ‘A person who does not eat meat himself but approves of the one who eats it, that person also becomes a part of the sin of eating meat due to his negative feelings. Similarly, a person who approves of the killer is also involved in the sin of violence.॥ 39॥ |
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