श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 120: मद्य और मांसके भक्षणमें महान् दोष, उनके त्यागकी महिमा एवं त्यागमें परम लाभका प्रतिपादन  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  13.120.15 
सदा यजति सत्रेण सदा दानं प्रयच्छति।
सदा तपस्वी भवति मधुमांसविवर्जनात्॥ १५॥
 
 
अनुवाद
मद्य और मांस का त्याग करके मनुष्य सदैव यज्ञ करता है, सदैव दान देता है और सदैव तप करता है ॥15॥
 
By giving up alcohol and meat, a person always performs yagya, always gives charity and always does penance. 15॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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