श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 120: मद्य और मांसके भक्षणमें महान् दोष, उनके त्यागकी महिमा एवं त्यागमें परम लाभका प्रतिपादन  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  13.120.12 
स्वमांसं परमांसेन यो वर्धयितुमिच्छति।
नारद: प्राह धर्मात्मा नियतं सोऽवसीदति॥ १२॥
 
 
अनुवाद
धर्मात्मा नारदजी कहते हैं: जो दूसरों का मांस खाकर अपना मांस बढ़ाने का प्रयत्न करता है, वह अवश्य दुःख पाता है ॥12॥
 
The virtuous Narada says: He who tries to increase his flesh by eating the flesh of others surely suffers. ॥12॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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