श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 120: मद्य और मांसके भक्षणमें महान् दोष, उनके त्यागकी महिमा एवं त्यागमें परम लाभका प्रतिपादन  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  13.120.1 
युधिष्ठिर उवाच
अहिंसा परमो धर्म इत्युक्तं बहुशस्त्वया।
जातो न: संशयो धर्मे मांसस्य परिवर्जने।
दोषो भक्षयत: क: स्यात् कश्चाभक्षयतो गुण:॥ १॥
 
 
अनुवाद
युधिष्ठिर ने पूछा, "पितामह! आपने अनेक बार कहा है कि अहिंसा परम धर्म है; अतः मांसाहार-त्याग धर्म के विषय में मुझे संदेह हो रहा है। अतः मैं जानना चाहता हूँ कि मांस खाने वाले को क्या हानि होती है और मांस न खाने वाले को क्या लाभ होता है?"॥1॥
 
Yudhishthira asked, "Grandfather! You have said many times that non-violence is the ultimate religion; therefore, I have doubts about the religion of abstaining from meat. Therefore, I want to know what harm a person who eats meat suffers and what benefit a person who does not eat meat gets?"॥1॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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