श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 12: कृतघ्नकी गति और प्रायश्चित्तका वर्णन तथा स्त्री-पुरुषके संयोगमें स्त्रीको ही अधिक सुख होनेके सम्बन्धमें भंगास्वनका उपाख्यान  »  श्लोक d21
 
 
श्लोक  13.12.d21 
आकाङ्क्षायामुपेक्षायां चोपपातकमुत्तमम्।
तस्मात् प्राणान् परित्यक्ष्ये प्रायश्चित्तार्थमित्युत॥
 
 
अनुवाद
यदि मैं अपने कृतघ्न जीवन की उपेक्षा करके प्रायश्चित की इच्छा भी रखूँ, तो भी मुझ पर घोर पाप का बोझ बढ़ता रहेगा। इसलिए, मैं प्रायश्चित के लिए अपने प्राण त्याग दूँगा।
 
‘Even if I ignore my ungrateful life and desire for atonement, I will continue to accumulate a grave sin. Therefore, I will sacrifice my life for atonement.’
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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