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श्लोक 13.12.54  |
एवमस्त्विति चोक्त्वा तामापृच्छॺ त्रिदिवं गत:।
एवं स्त्रिया महाराज अधिका प्रीतिरुच्यते॥ ५४॥ |
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अनुवाद |
महाराज! तब 'एवमस्तु' कहकर इन्द्र उस तपस्या से विदा लेकर स्वर्गलोक को चले गए। इस प्रकार कहा गया है कि स्त्री पुरुष की अपेक्षा विषय-भोगों में अधिक आनन्दित होती है। 54॥ |
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Maharaj! Then saying 'Evamastu', Indra took leave from that penance and went to heaven. In this way, a woman is said to have more pleasure in sensual pleasures than a man. 54॥ |
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इति श्रीमहाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि भङ्गास्वनोपाख्याने द्वादशोऽध्याय:॥ १२॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्वके अन्तर्गत दान - धर्मपर्वमें भङ्गास्वनका उपाख्यान विषयक बारहवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १२ ॥
(दाक्षिणात्य अधिक पाठके २६ श्लोक मिलाकर कुल ८० श्लोक हैं) |
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