श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 12: कृतघ्नकी गति और प्रायश्चित्तका वर्णन तथा स्त्री-पुरुषके संयोगमें स्त्रीको ही अधिक सुख होनेके सम्बन्धमें भंगास्वनका उपाख्यान  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  13.12.44 
तापसी तु तत: शक्रमुवाच प्रयताञ्जलि:।
स्त्रीभूतस्य हि ये पुत्रास्ते मे जीवन्तु वासव॥ ४४॥
 
 
अनुवाद
तब तापसी ने हाथ जोड़कर इन्द्र से कहा, 'देवेन्द्र! स्त्री बनने के बाद मेरे जो पुत्र उत्पन्न होंगे, वे जीवित रहें।'
 
Then Tapasee folded her hands and said to Indra, 'Devendra! After becoming a woman, may the sons born to me be alive.'
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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