श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 12: कृतघ्नकी गति और प्रायश्चित्तका वर्णन तथा स्त्री-पुरुषके संयोगमें स्त्रीको ही अधिक सुख होनेके सम्बन्धमें भंगास्वनका उपाख्यान  »  श्लोक 38
 
 
श्लोक  13.12.38 
तेषां च वैरमुत्पन्नं कालयोगेन वै द्विज।
एतत् शोचाम्यहं ब्रह्मन् दैवेन समभिप्लुता॥ ३८॥
 
 
अनुवाद
हे ब्राह्मण! काल के प्रभाव से सभी पुत्रों में वैर उत्पन्न हो गया और वे आपस में लड़कर नष्ट हो गए। इस प्रकार मैं भाग्य के मारे हुए दुःख में डूब रहा हूँ।॥38॥
 
O Brahmin! Due to the influence of time, enmity arose between all the sons and they fought among themselves and got destroyed. Thus, I am drowning in sorrow, struck by fate.'॥ 38॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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