श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 12: कृतघ्नकी गति और प्रायश्चित्तका वर्णन तथा स्त्री-पुरुषके संयोगमें स्त्रीको ही अधिक सुख होनेके सम्बन्धमें भंगास्वनका उपाख्यान  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  13.12.30 
यूयं भङ्गास्वनापत्यास्तापसस्येतरे सुता:।
कश्यपस्य सुराश्चैव असुराश्च सुतास्तथा॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
तुम भंगास्वन के पुत्र हो और अन्य सौ भाई तपस्वी के पुत्र हैं। फिर तुम दोनों में प्रेम कैसे हो सकता है? देवता और दानव कश्यप के पुत्र हैं, फिर भी उनमें प्रेम नहीं है॥30॥
 
‘You are the sons of Bhangaswan and the other hundred brothers are the sons of an ascetic. Then how can there be love between you? The gods and demons are the sons of Kashyap, yet there is no love between them.॥ 30॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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