श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 12: कृतघ्नकी गति और प्रायश्चित्तका वर्णन तथा स्त्री-पुरुषके संयोगमें स्त्रीको ही अधिक सुख होनेके सम्बन्धमें भंगास्वनका उपाख्यान  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  13.12.29 
भ्रातॄणां नास्ति सौभ्रात्रं येष्वेकस्य पितु: सुता:।
राज्यहेतोर्विवदिता: कश्यपस्य सुरासुरा:॥ २९॥
 
 
अनुवाद
उन्होंने कहा, 'राजकुमारों! एक ही पिता के पुत्र भाइयों में भी प्रायः भाईचारे का प्रेम नहीं होता। देवता और दानव दोनों ही कश्यपजी के पुत्र हैं, फिर भी वे राज्य के लिए आपस में लड़ते रहते हैं।'
 
He said, 'Princes! Even among brothers who are sons of the same father, there is usually no great brotherly love. Both the gods and the demons are sons of Kashyapji, yet they keep fighting among themselves for the kingdom.'
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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