श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 12: कृतघ्नकी गति और प्रायश्चित्तका वर्णन तथा स्त्री-पुरुषके संयोगमें स्त्रीको ही अधिक सुख होनेके सम्बन्धमें भंगास्वनका उपाख्यान  »  श्लोक 26-27
 
 
श्लोक  13.12.26-27 
सहिता भ्रातरस्तेऽथ राज्यं बुभुजिरे तदा।
तान् दृष्ट्वा भ्रातृभावेन भुञ्जानान् राज्यमुत्तमम्॥ २६॥
चिन्तयामास देवेन्द्रो मन्युनाथ परिप्लुत:।
उपकारोऽस्य राजर्षे: कृतो नापकृतं मया॥ २७॥
 
 
अनुवाद
तब सब भाई मिलकर उस राज्य का भोग करने लगे। उन सबको भ्रातृभाव से रहते और उस अद्भुत राज्य का भोग करते देखकर क्रोध में भरे हुए देवराज इन्द्र ने सोचा कि मैंने इस रानी पर केवल उपकार ही किया है, इसका कुछ भी अनिष्ट नहीं किया है॥ 26-27॥
 
Then all the brothers got together and started enjoying that kingdom. Seeing all of them living together with brotherly feeling and enjoying that wonderful kingdom, Devraj Indra filled with anger thought that I have only done a favour to this queen, I have not done any harm to her.॥ 26-27॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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