श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 12: कृतघ्नकी गति और प्रायश्चित्तका वर्णन तथा स्त्री-पुरुषके संयोगमें स्त्रीको ही अधिक सुख होनेके सम्बन्धमें भंगास्वनका उपाख्यान  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  13.12.10 
अथ पीतोदकं सोऽश्वं वृक्षे बद्‍ध्वा नृपोत्तम:।
अवगाह्य तत: स्नातस्तत्र स्त्रीत्वमवाप्तवान्॥ १०॥
 
 
अनुवाद
जब घोड़े ने जल पी लिया, तब महाराज ने उसे एक वृक्ष से बाँध दिया और स्वयं जल में प्रवेश किया। स्नान करते ही राजा को स्त्री की गति प्राप्त हो गई॥10॥
 
When the horse had drunk the water, the great king tied it to a tree and himself entered the water. As soon as he bathed in it, the king acquired the state of a woman.॥10॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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