श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 117: पापसे छूटनेके उपाय तथा अन्नदानकी विशेष महिमा  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  13.117.3 
बृहस्पतिरुवाच
कृत्वा पापानि कर्माणि अधर्मवशमागत:।
मनसा विपरीतेन निरयं प्रतिपद्यते॥ ३॥
 
 
अनुवाद
बृहस्पतिजी बोले - राजन! जो मनुष्य पापकर्म करता है और अधर्म के वशीभूत हो जाता है, उसकी बुद्धि धर्म के विपरीत दिशा में जाने लगती है; इसीलिए वह नरक में गिरता है॥3॥
 
Brihaspatiji said – King! The person who commits sinful acts and becomes influenced by unrighteousness, his mind starts going in the direction contrary to religion; That's why he falls into hell. 3॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.