श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 117: पापसे छूटनेके उपाय तथा अन्नदानकी विशेष महिमा  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  13.117.14 
यस्य ह्यन्नमुपाश्नन्ति ब्राह्मणानां शतं दश।
हृष्टेन मनसा दत्तं न स तिर्यग्गतिर्भवेत्॥ १४॥
 
 
अनुवाद
जिसका भोजन एक हजार ब्राह्मण प्रसन्नतापूर्वक करते हैं और स्वयं खाते हैं, वह मनुष्य पशु या पक्षी की योनि में जन्म नहीं लेता। 14.
 
The person whose food is happily offered by a thousand brahmins and is eaten by them does not take birth in the womb of an animal or a bird. 14.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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