श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 117: पापसे छूटनेके उपाय तथा अन्नदानकी विशेष महिमा  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  13.117.1 
युधिष्ठिर उवाच
अधर्मस्य गतिर्ब्रह्मन् कथिता मे त्वयानघ।
धर्मस्य तु गतिं श्रोतुमिच्छामि वदतां वर॥ १॥
 
 
अनुवाद
युधिष्ठिर ने पूछा - ब्रह्मन् ! आपने अधर्म की गति बताई। पापरहित वक्ताओं में श्रेष्ठ! अब मैं धर्म की गति सुनना चाहता हूँ । 1॥
 
Yudhishthir asked – Brahman! You showed the pace of unrighteousness. The best among sinless speakers! Now I want to hear the pace of religion. 1॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.