श्री महाभारत » पर्व 13: अनुशासन पर्व » अध्याय 111: मास, पक्ष एवं तिथिसम्बन्धी विभिन्न व्रतोपवासके फलका वर्णन » श्लोक 48-49 |
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| | श्लोक 13.111.48-49  | षष्टिर्वर्षसहस्राणि दिवमावसते च स:॥ ४८॥
वीणानां वल्लकीनां च वेणूनां च विशाम्पते।
सुघोषैर्मधुरै: शब्दै: सुप्त: स प्रतिबोध्यते॥ ४९॥ | | | अनुवाद | प्रजानाथ! वह साठ हजार वर्षों तक स्वर्ग में रहता है और वहाँ वीणा, वल्लकी, वेणु आदि वाद्यों की मधुर ध्वनि तथा मधुर ध्वनियों से निद्रा से जागता है ॥48-49॥ | | Prajanath! He lives in heaven for sixty thousand years and there he is awakened from sleep by the pleasant sound of the instruments like Veena, Vallaki, Venu etc. and by sweet sounds. ॥ 48-49॥ |
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