श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 111: मास, पक्ष एवं तिथिसम्बन्धी विभिन्न व्रतोपवासके फलका वर्णन  »  श्लोक 14-15
 
 
श्लोक  13.111.14-15 
पञ्चम्यां वापि षष्ठॺां च पौर्णमास्यां च भारत।
उपोष्य एकभक्तेन नियतात्मा जितेन्द्रिय:॥ १४॥
क्षमावान् रूपसम्पन्न: श्रुतवांश्चैव जायते।
नानपत्यो भवेत् प्राज्ञो दरिद्रो वा कदाचन॥ १५॥
 
 
अनुवाद
यदि कोई मनुष्य पंचमी, षष्ठी और पूर्णिमा के दिन अपने मन और इन्द्रियों को वश में करके एक समय भोजन और दूसरे समय उपवास करता है, तो वह क्षमाशील, सुन्दर और विद्वान् हो जाता है। वह बुद्धिमान् पुरुष कभी सन्तानहीन या दरिद्र नहीं होता। 14-15॥
 
India If a person controls his mind and senses on Panchami, Shashthi and Purnima days and eats food at one time and fasts at the other time, then he becomes forgiving, beautiful and learned. That wise man is never childless or poor. 14-15॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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