श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 100: सबके पूजनीय और वन्दनीय कौन हैं—इस विषयमें इन्द्र और मातलिका संवाद  »  श्लोक d10
 
 
श्लोक  13.100.d10 
धनं विद्यास्तथैश्वर्यं येषां न चलयेन्मतिम्।
चलितां ये निगृह्णन्ति तान् नित्यं पूजयाम्यहम्॥
 
 
अनुवाद
मैं सदैव उन लोगों की पूजा करता हूँ जिनकी बुद्धि धन, विद्या और ऐश्वर्य से विचलित नहीं होती तथा जो विवेक से चंचल बुद्धि को भी वश में कर लेते हैं।
 
I always worship those whose intellect cannot be perturbed by wealth, knowledge and prosperity, and who controls even the fickle intellect with prudence.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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