श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 10: अनधिकारीको उपदेश देनेसे हानिके विषयमें एक शूद्र और तपस्वी ब्राह्मणकी कथा  »  श्लोक 73
 
 
श्लोक  13.10.73 
विमृश्य तस्मात् प्राज्ञेन वक्तव्यं धर्ममिच्छता।
सत्यानृतेन हि कृत उपदेशो हिनस्ति हि॥ ७३॥
 
 
अनुवाद
अतः धर्म की इच्छा रखने वाले विद्वान पुरुष को बहुत सोच-विचारकर बोलना चाहिए; क्योंकि सत्य और असत्य से मिश्रित वाणी से दिया गया उपदेश हानिकारक होता है ॥ 73॥
 
Therefore, a learned person who desires Dharma should speak after a lot of thought; because preaching given with words that are a mixture of truth and falsehood is harmful. ॥ 73॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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