श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 10: अनधिकारीको उपदेश देनेसे हानिके विषयमें एक शूद्र और तपस्वी ब्राह्मणकी कथा  »  श्लोक 61
 
 
श्लोक  13.10.61 
एवं तवोग्रं हि तप उपदेशेन नाशितम्।
पुरोहितत्वमुत्सृज्य यतस्व त्वं पुनर्भवे॥ ६१॥
 
 
अनुवाद
तुम घोर तप कर रहे थे, किन्तु मुझे उपदेश देने के कारण वह नष्ट हो गया। अतः तुम्हें पुरोहिती का कार्य त्यागकर पुनः संसार सागर से पार होने का प्रयत्न करना चाहिए। 61.
 
You were performing a severe penance, but it was destroyed because you preached to me. Therefore, you should give up the work of a priest and try again to cross the ocean of the world. 61.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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