श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 10: अनधिकारीको उपदेश देनेसे हानिके विषयमें एक शूद्र और तपस्वी ब्राह्मणकी कथा  »  श्लोक 57
 
 
श्लोक  13.10.57 
बृस्यां दर्भेषु हव्ये च कव्ये च मुनिसत्तम।
एतेन कर्मदोषेण पुरोधास्त्वमजायथा:॥ ५७॥
 
 
अनुवाद
महामुनि! कुशा को कैसे रखना चाहिए? कुशा को कैसे बिछाना चाहिए? हवन और नैवेद्य कैसे अर्पित करना चाहिए? आपने मुझे इन सब बातों का उपदेश दिया था। इसी कर्म दोष के कारण आपको इस जन्म में पुरोहित बनना पड़ा। 57।
 
Great sage! How should the kusha grass be kept? How should the kusha grass be spread? How should the oblations and offerings be offered? You had preached me about all these things. Due to this karmic defect, you had to become a priest in this birth. 57.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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