श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 10: अनधिकारीको उपदेश देनेसे हानिके विषयमें एक शूद्र और तपस्वी ब्राह्मणकी कथा  »  श्लोक 50
 
 
श्लोक  13.10.50 
पुरोहित उवाच
पुण्याहवाचने नित्यं धर्मकृत्येषु चासकृत्।
शान्तिहोमेषु च सदा किं त्वं हससि वीक्ष्य माम्॥ ५०॥
 
 
अनुवाद
पुरोहित ने कहा - महाराज ! आप प्रतिदिन पुण्याहवाचन के समय, बार-बार धार्मिक अनुष्ठान करते समय तथा शांतिहोम के अवसर पर मेरी ओर क्यों देखते और हंसते हैं ॥50॥
 
The priest said - Maharaj! Why do you look at me and laugh every day during the Punyahavachan and while performing religious rites repeatedly and on the occasions of Shanti-homa? ॥ 50॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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