श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 10: अनधिकारीको उपदेश देनेसे हानिके विषयमें एक शूद्र और तपस्वी ब्राह्मणकी कथा  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  13.10.30 
अथ दक्षिणमावृत्य बृसीं चरमशैर्षिकीम्।
कृतामन्यायतो दृष्ट्वा तं शूद्रमृषिरब्रवीत्॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
वे उसे दक्षिण दिशा में ले गए और पश्चिम दिशा से ब्राह्मण के लिए एक चटाई बिछा दी। शास्त्रविरुद्ध इस अनुचित आचरण को देखकर ऋषि ने शूद्र से कहा-॥30॥
 
He took him to the south and spread a mat for the Brahmin from the west. Seeing this inappropriate behaviour contrary to the scriptures, the sage said to the shudra -॥ 30॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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