श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 10: अनधिकारीको उपदेश देनेसे हानिके विषयमें एक शूद्र और तपस्वी ब्राह्मणकी कथा  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  13.10.27 
अथ तं तापसं शूद्र: सोऽब्रवीद् भरतर्षभ।
पितृकार्यं करिष्यामि तत्र मेऽनुग्रहं कुरु॥ २७॥
 
 
अनुवाद
हे भरतश्रेष्ठ! एक दिन उस शूद्र ने उन तपस्वी ऋषि से कहा, 'मैं अपने पितरों का श्राद्ध करूँगा। कृपया उसमें मेरी सहायता करें।'॥27॥
 
O best of the Bharatas! One day that Shudra said to that ascetic sage, 'I will perform the Shraddha of my ancestors. Please show me your favour in that.'॥ 27॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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