श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 10: अनधिकारीको उपदेश देनेसे हानिके विषयमें एक शूद्र और तपस्वी ब्राह्मणकी कथा  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  13.10.18 
भीष्म उवाच
एवमुक्तस्तु मुनिना स शूद्रोऽचिन्तयन्नृप।
कथमत्र मया कार्यं श्रद्धा धर्मपरा च मे॥ १८॥
 
 
अनुवाद
भीष्मजी कहते हैं - हे पुरुषों के स्वामी! जब मुनि ने ऐसा कहा, तब शूद्र ने सोचा कि मैं यहाँ क्या करूँ? मेरी श्रद्धा तो केवल संन्यास के कर्तव्यों के पालन में है॥18॥
 
Bhishmaji says - O Lord of men! When the sage said this, the shudra thought, what should I do here? My faith is only for performing the duties of Sannyas.॥ 18॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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