श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 10: अनधिकारीको उपदेश देनेसे हानिके विषयमें एक शूद्र और तपस्वी ब्राह्मणकी कथा  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  13.10.15 
वर्णावरोऽहं भगवन् शूद्रो जात्यास्मि सत्तम।
शुश्रूषां कर्तुमिच्छामि प्रपन्नाय प्रसीद मे॥ १५॥
 
 
अनुवाद
हे प्रभु! हे महामुनि! मैं वर्णों में सबसे नीच शूद्र जाति का हूँ और यहाँ रहकर संतों की सेवा करना चाहता हूँ; अतः आपकी शरण में आने के कारण आप मुझ पर प्रसन्न हों।॥15॥
 
O Lord! O great saint! I belong to the Shudra caste, the lowest among the Varnas, and wish to stay here and serve the saints; therefore, please be pleased with me for having surrendered to you.'॥ 15॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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