श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 1: युधिष्ठिरको सान्त्वना देनेके लिये भीष्मजीके द्वारा गौतमी ब्राह्मणी, व्याध, सर्प, मृत्यु और कालके संवादका वर्णन  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  13.1.9 
सोऽहं तव ह्यन्तकर: सुहृद्वधकरस्तथा।
न शान्तिमधिगच्छामि पश्यंस्त्वां दु:खितं क्षितौ॥ ९॥
 
 
अनुवाद
मैं ही तुम्हारे जीवन का अंत करूँगा और मैं ही तुम्हारे अन्य मित्रों का भी वध करूँगा। तुम्हें इस प्रकार दुःखी होकर भूमि पर पड़ा देखकर मुझे शांति नहीं मिलती॥9॥
 
I am the one who will put an end to your life and I am the one who will kill your other friends as well. I cannot find peace seeing you lying on the ground in such a sad state.॥ 9॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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