श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 1: युधिष्ठिरको सान्त्वना देनेके लिये भीष्मजीके द्वारा गौतमी ब्राह्मणी, व्याध, सर्प, मृत्यु और कालके संवादका वर्णन  »  श्लोक 81
 
 
श्लोक  13.1.81 
एतत् श्रुत्वा शमं गच्छ मा भू: शोकपरो नृप।
स्वकर्मप्रत्ययाँल्लोकान् सर्वे गच्छन्ति वै नृप॥ ८१॥
 
 
अनुवाद
नरेश्वर! इस उपाख्यान को सुनकर शांति प्राप्त करो और शोक में मत पड़ो। सभी मनुष्य अपने-अपने कर्मों के अनुसार प्राप्त लोकों में जाते हैं।
 
Nareshwar! After listening to this anecdote, take peace and do not fall into sorrow. All human beings go to the worlds they attain according to their deeds.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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