श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 1: युधिष्ठिरको सान्त्वना देनेके लिये भीष्मजीके द्वारा गौतमी ब्राह्मणी, व्याध, सर्प, मृत्यु और कालके संवादका वर्णन  »  श्लोक 76
 
 
श्लोक  13.1.76 
एवं नाहं न वै मृत्युर्न सर्पो न तथा भवान्।
न चेयं ब्राह्मणी वृद्धा शिशुरेवात्र कारणम्॥ ७६॥
 
 
अनुवाद
इस प्रकार विचार करने पर न तो मैं, न मृत्यु, न सर्प, न तुम (शिकारी) और न ही यह वृद्धा ब्राह्मणी इस बालक की मृत्यु का कारण है। यह बालक स्वयं ही अपने कर्मानुसार अपनी मृत्यु का कारण बना है। 76.
 
Thinking in this manner, neither I, nor death, nor the snake, nor you (hunter) nor this old Brahmin woman is the cause of this child's death. This child himself has become the cause of his death according to his karma. 76.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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