श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 1: युधिष्ठिरको सान्त्वना देनेके लिये भीष्मजीके द्वारा गौतमी ब्राह्मणी, व्याध, सर्प, मृत्यु और कालके संवादका वर्णन  »  श्लोक 75
 
 
श्लोक  13.1.75 
यथा च्छायातपौ नित्यं सुसम्बद्धौ निरन्तरम्।
तथा कर्म च कर्ता च सम्बद्धावात्मकर्मभि:॥ ७५॥
 
 
अनुवाद
जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश और छाया एक दूसरे के साथ निरन्तर संपर्क में रहते हैं, उसी प्रकार कर्म और कर्ता भी अपने-अपने कर्म के अनुसार एक दूसरे के संपर्क में रहते हैं ॥ 75॥
 
Just as the sunlight and the shadow are constantly in touch with each other, similarly the action and the doer are in touch with each other according to their karma. ॥ 75॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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