श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 1: युधिष्ठिरको सान्त्वना देनेके लिये भीष्मजीके द्वारा गौतमी ब्राह्मणी, व्याध, सर्प, मृत्यु और कालके संवादका वर्णन  »  श्लोक 74
 
 
श्लोक  13.1.74 
यथा मृत्पिण्डत: कर्ता कुरुते यद् यदिच्छति।
एवमात्मकृतं कर्म मानव: प्रतिपद्यते॥ ७४॥
 
 
अनुवाद
जैसे कुम्हार मिट्टी के ढेले से जो चाहे बर्तन बना लेता है, वैसे ही मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार सब कुछ पा लेता है ॥ 74॥
 
Just as a potter makes whatever utensils he wants from a lump of clay, similarly a man gets everything according to his deeds. ॥ 74॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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