श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 1: युधिष्ठिरको सान्त्वना देनेके लिये भीष्मजीके द्वारा गौतमी ब्राह्मणी, व्याध, सर्प, मृत्यु और कालके संवादका वर्णन  »  श्लोक 71
 
 
श्लोक  13.1.71 
अकरोद् यदयं कर्म तन्नोऽर्जुनक चोदकम्।
विनाशहेतुर्नान्योऽस्य वध्यतेऽयं स्वकर्मणा॥ ७१॥
 
 
अनुवाद
अर्जुन! इस बालक के कर्म ही इसकी मृत्यु का कारण बने हैं। इसके विनाश का कारण कोई और नहीं है। यह जीवात्मा अपने ही कर्मों के कारण मरता है ॥ 71॥
 
Arjun! The deeds done by this child have led to his death. No one else is the cause of his destruction. This soul dies due to its own deeds. ॥ 71॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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