वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्री महाभारत
»
पर्व 13: अनुशासन पर्व
»
अध्याय 1: युधिष्ठिरको सान्त्वना देनेके लिये भीष्मजीके द्वारा गौतमी ब्राह्मणी, व्याध, सर्प, मृत्यु और कालके संवादका वर्णन
»
श्लोक 68
श्लोक
13.1.68
तस्मादुभौ कालवशावावां निर्दिष्टकारिणौ।
नावां दोषेण गन्तव्यौ त्वया लुब्धक कर्हिचित्॥ ६८॥
अनुवाद
अतः व्याध! हम दोनों को काल के अधीन और काल की आज्ञा का पालन करने वाला समझकर, तुम हमें कभी दोष न दो ॥68॥
So Huntsman! You should never blame us, considering both of us to be subordinate to time and obeying the orders of time. 68॥
✨ ai-generated
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.