श्री महाभारत » पर्व 13: अनुशासन पर्व » अध्याय 1: युधिष्ठिरको सान्त्वना देनेके लिये भीष्मजीके द्वारा गौतमी ब्राह्मणी, व्याध, सर्प, मृत्यु और कालके संवादका वर्णन » श्लोक 66 |
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| | श्लोक 13.1.66  | लुब्धक उवाच
युवामुभौ कालवशौ यदि मे मृत्युपन्नगौ।
हर्षक्रोधौ यथा स्यातामेतदिच्छामि वेदितुम्॥ ६६॥ | | | अनुवाद | व्याध बोला, "हे मृत्यु और सर्प! यदि तुम दोनों ही काल के अधीन हो, तो मैं तटस्थ मनुष्य, दूसरों का उपकार करने वाले के प्रति प्रसन्न क्यों होता हूँ और दूसरों को कष्ट पहुँचाने वाले तुम दोनों के प्रति क्रोधित क्यों होता हूँ?" 66. | | The hunter said, "O Death and Serpent! If both of you are subject to time, then why do I, a neutral person, feel happy towards a benefactor and feel angry towards you two who harm others?" 66. |
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