श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 1: युधिष्ठिरको सान्त्वना देनेके लिये भीष्मजीके द्वारा गौतमी ब्राह्मणी, व्याध, सर्प, मृत्यु और कालके संवादका वर्णन  »  श्लोक 61
 
 
श्लोक  13.1.61 
भीष्म उवाच
सर्पोऽथार्जुनकं प्राह श्रुतं ते मृत्युभाषितम्।
नानागसं मां पाशेन संतापयितुमर्हसि॥ ६१॥
 
 
अनुवाद
भीष्मजी कहते हैं- युधिष्ठिर! तत्पश्चात सर्प ने अर्जुन से कहा- 'तुमने मृत्यु के विषय में तो सुना ही है न? अब मुझ निरपराध मनुष्य को बंदी बनाकर कष्ट देना तुम्हारे लिए उचित नहीं है।'
 
Bhishmaji says- Yudhishthira! Thereafter the snake said to Arjuna- 'You have heard about death, right? Now it is not right for you to torture me, an innocent person, by binding me in captivity. 61.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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