श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 1: युधिष्ठिरको सान्त्वना देनेके लिये भीष्मजीके द्वारा गौतमी ब्राह्मणी, व्याध, सर्प, मृत्यु और कालके संवादका वर्णन  »  श्लोक 54
 
 
श्लोक  13.1.54 
प्रवृत्तयश्च लोकेऽस्मिंस्तथैव च निवृत्तय:।
तासां विकृतयो याश्च सर्वं कालात्मकं स्मृतम्॥ ५४॥
 
 
अनुवाद
इस संसार में जितनी भी प्रकार की प्रवृत्तियाँ और प्रवृत्तियाँ तथा उनके विकृतियाँ (परिणाम) हैं, वे सब काल के ही रूप हैं ॥54॥
 
All the types of tendencies and tendencies and their distortions (results) that exist in this world are all forms of time. 54॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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