श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 1: युधिष्ठिरको सान्त्वना देनेके लिये भीष्मजीके द्वारा गौतमी ब्राह्मणी, व्याध, सर्प, मृत्यु और कालके संवादका वर्णन  »  श्लोक 49
 
 
श्लोक  13.1.49 
भीष्म उवाच
तथा ब्रुवति तस्मिंस्तु पन्नगे मृत्युचोदिते।
आजगाम ततो मृत्यु: पन्नगं चाब्रवीदिदम्॥ ४९॥
 
 
अनुवाद
भीष्मजी कहते हैं - राजन ! जब मृत्यु की प्रेरणा से बालक को डसने वाला वह सर्प बार-बार अपने को निर्दोष और मृत्यु को दोषी बताने लगा, तब मृत्यु के देवता भी वहाँ पहुँच गए और सर्प से इस प्रकार बोले ॥49॥
 
Bhishmaji says – King! When the snake, which had bitten the child with the inspiration of death, started repeatedly claiming that it was innocent and death was guilty, then the god of death also reached there and spoke to the snake in this way. 49॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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