श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 1: युधिष्ठिरको सान्त्वना देनेके लिये भीष्मजीके द्वारा गौतमी ब्राह्मणी, व्याध, सर्प, मृत्यु और कालके संवादका वर्णन  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  13.1.43 
लुब्धक उवाच
कारणं यदि न स्याद् वै न कर्ता स्यास्त्वमप्युत।
विनाशकारणं त्वं च तस्माद् वध्योऽसि मे मत:॥ ४३॥
 
 
अनुवाद
शिकारी बोला - हे सर्प! यदि हम यह मान भी लें कि तुम न तो अपराध के कारण हो और न ही कर्ता, तो भी इस बालक की मृत्यु तुम्हारे कारण हुई है, अतः मैं तुम्हें वध के योग्य समझता हूँ।
 
The hunter said - O snake! Even if we assume that you are neither the cause nor the doer of the crime, still this boy's death has happened because of you, so I consider you worthy of being killed.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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