श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 1: युधिष्ठिरको सान्त्वना देनेके लिये भीष्मजीके द्वारा गौतमी ब्राह्मणी, व्याध, सर्प, मृत्यु और कालके संवादका वर्णन  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  13.1.41 
अथवा मतमेतत्ते तेऽप्यन्योन्यप्रयोजका:।
कार्यकारणसंदेहो भवत्यन्योन्यचोदनात्॥ ४१॥
 
 
अनुवाद
अथवा यदि तुम्हारा ऐसा मत हो कि ये दण्डचक्र आदि एक दूसरे के साधन हैं; अतः ये कारण हैं। परन्तु ऐसा मानने से कारण और कार्य के निर्णय में संदेह होता है, क्योंकि एक दूसरे का प्रेरक है ॥41॥
 
Or if you are of the opinion that these danda-chakra etc. are the instruments of each other; hence they are causes. But by believing this, there is doubt in the decision of cause and effect because one is the instigator of the other. ॥ 41॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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