श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 1: युधिष्ठिरको सान्त्वना देनेके लिये भीष्मजीके द्वारा गौतमी ब्राह्मणी, व्याध, सर्प, मृत्यु और कालके संवादका वर्णन  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  13.1.40 
सर्प उवाच
सर्व एते ह्यस्ववशा दण्डचक्रादयो यथा।
तथाहमपि तस्मान्मे नैष दोषो मतस्तव॥ ४०॥
 
 
अनुवाद
सर्प ने कहा - शिकारी! जैसे मिट्टी का घड़ा बनाते समय छड़, चक्र आदि सभी वस्तुएँ समस्त कारणों के अधीन होती हैं, वैसे ही मैं भी मृत्यु के अधीन हूँ। अतः तुमने मुझ पर जो आरोप लगाया है, वह उचित नहीं है ॥40॥
 
The snake said - Hunter! Just as the rod, wheel and other things are subject to all the causes while making a clay pot, I too am subject to death. Therefore, the accusation you have made on me is not correct. ॥ 40॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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