श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 1: युधिष्ठिरको सान्त्वना देनेके लिये भीष्मजीके द्वारा गौतमी ब्राह्मणी, व्याध, सर्प, मृत्यु और कालके संवादका वर्णन  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  13.1.35 
सर्प उवाच
को न्वर्जुनक दोषोऽत्र विद्यते मम बालिश।
अस्वतन्त्रं हि मां मृत्युर्विवशं यदचूचुदत्॥ ३५॥
 
 
अनुवाद
सर्प बोला- हे मूर्ख अर्जुन! इसमें मेरा क्या दोष है? मैं तो दास हूँ। मृत्यु ने मुझे यह कार्य करने के लिए विवश किया है।
 
The snake said- O foolish Arjun! What is my fault in this? I am a slave. Death compelled me to do this work. 35.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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