श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 1: युधिष्ठिरको सान्त्वना देनेके लिये भीष्मजीके द्वारा गौतमी ब्राह्मणी, व्याध, सर्प, मृत्यु और कालके संवादका वर्णन  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  13.1.28 
लुब्धक उवाच
हत्वा लाभ: श्रेय एवाव्यय: स्या-
ल्लभ्यो लाभ्य: स्याद् बलिभ्य: प्रशस्त:।
कालाल्लाभो यस्तु सत्यो भवेत
श्रेयोलाभ: कुत्सितेऽस्मिन्न ते स्यात्॥ २८॥
 
 
अनुवाद
शिकारी बोला, "देवी! इस साँप को मारने से जो अनेक लोगों का कल्याण होगा, वही शाश्वत लाभ है। बलवानों से बलपूर्वक लाभ उठाना ही सर्वोत्तम लाभ है। मृत्यु से जो लाभ प्राप्त होता है, वही वास्तविक लाभ है। इस तुच्छ साँप को जीवित रखकर तुम्हें कोई श्रेय नहीं मिल सकता।" 28.
 
The hunter said, "Devi! By killing this snake, the good that will be done to many people is the only everlasting benefit. The best benefit is to take advantage of the strong by force. The benefit that is gained from death is the real benefit. You cannot get any credit by keeping this lowly snake alive." 28.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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