श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 1: युधिष्ठिरको सान्त्वना देनेके लिये भीष्मजीके द्वारा गौतमी ब्राह्मणी, व्याध, सर्प, मृत्यु और कालके संवादका वर्णन  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  13.1.23 
हत्वा चैनं नामृत: स्यादयं मे
जीवत्यस्मिन् कोऽत्यय:स्यादयं ते।
अस्योत्सर्गे प्राणयुक्तस्य जन्तो-
र्मृत्योर्लोकं को नु गच्छेदनन्तम्॥ २३॥
 
 
अनुवाद
यदि मैं इसे मार दूँ, तो मेरा पुत्र जीवित नहीं हो सकेगा। और यदि यह सर्प जीवित भी रह जाए, तो इससे तुम्हारा क्या अहित होगा? ऐसी स्थिति में इस जीव को मारकर कौन सनातन यमराज के लोक में जाएगा?॥23॥
 
If I kill him, my son will not be able to come to life. And even if this snake lives, what harm will it cause to you? In such a situation, who will go to the eternal world of Yamaraja by killing this living creature?॥ 23॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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