श्री महाभारत  »  पर्व 13: अनुशासन पर्व  »  अध्याय 1: युधिष्ठिरको सान्त्वना देनेके लिये भीष्मजीके द्वारा गौतमी ब्राह्मणी, व्याध, सर्प, मृत्यु और कालके संवादका वर्णन  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  13.1.20 
अग्नौ प्रक्षिप्यतामेष च्छिद्यतां खण्डशोऽपि वा।
न ह्ययं बालहा पापश्चिरं जीवितुमर्हति॥ २०॥
 
 
अनुवाद
"क्या मैं इसे आग में फेंक दूँ या टुकड़े-टुकड़े कर दूँ? यह पापी साँप, जिसने एक बच्चे को मार डाला, अब अधिक समय तक जीवित रहने का हकदार नहीं है।"
 
"Should I throw it into the fire or tear it into pieces? This sinful serpent, who killed a child, does not deserve to live much longer."
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.